भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी नजरों में तो सहरा हुआ है / पवन कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तेरी नजरों में तो सहरा हुआ है
मगर दरिया वहां ठहरा हुआ है

लगे हैं फिर कुछ अंदेशे सताने
लहू का रंग फिर गहरा हुआ है

जहाँ तक देखता हूँ मैं वहाँ तक
हर-इक ज“र्रा तेरा चेहरा हुआ है

था उस कमज़र्फ को आख़िर छलकना
घड़ा वो कब मियां गहरा हुआ है

हर इक जानिब ज’मीं से आस्मां तक
तुम्हारा ही अलम फहरा हुआ है

कमज़र्फ = ओछा, अलम = ध्वजा