तेरी नजरों में तो सहरा हुआ है
मगर दरिया वहां ठहरा हुआ है
लगे हैं फिर कुछ अंदेशे सताने
लहू का रंग फिर गहरा हुआ है
जहाँ तक देखता हूँ मैं वहाँ तक
हर-इक जर्रा तेरा चेहरा हुआ है
था उस कमज़र्फ को आख़िर छलकना
घड़ा वो कब मियां गहरा हुआ है
हर इक जानिब जमीं से आस्मां तक
तुम्हारा ही अलम फहरा हुआ है
कमज़र्फ = ओछा, अलम = ध्वजा