तेरे इश्क में हमने दिल को जलाया,
कसम सर की तेरे मजा कुछ न पाया॥टेक॥
नजर खार की शक्ल आते हैं सब गुल,
इन आँखों में जब से तू आकर समाया।
करूँ शुक्र अल्लाह का या तुम्हारा,
मेरे भाग जागे जो तू आज आया।
हुआ ऐ असर आहोनालों में मेरे,
पकड़कर तुझे चंग-सी खींच लाया।
किसी को भला मकदरत कब ये होगी,
हमीं थे कि जो नाज तेरा उठाया।
असर हो न क्यों दिल में दिल से जो चाहे,
मसल सच है जो उसको ढूँढा वह पाया।
शहादत की हसरत ने है सर झुकाया,
जो शोखी से शमशीर तुमने उठाया।
तसव्वुर ने तेरे मेरे दिल से प्यारे,
हमीं की है वल्लाह हम से भुलाया।
शकरकन्द वह अँगूर दिल से भुलाया,
मजा लाले लब का तेरे जिसने पाया है।
दोआ मुदद्दों माँगी है मसजिदों में,
तब उस बुत को हमने शिवाले में पाया।
झुका बस लिया हार कर अपनी गरदन,
तेरे बस्फ़ में जो क़लम को उठाया।
खुली मह मुनव्वर की क्या साफ़ कलई,
शवे माह में बाम पर जो तू आया।
नहीं सिर्फ़ मुझ पर ही मेरी जफाएँ,
हजारों का जी हाय तूने जलाया।
चमन में है बरसात की आमद आमद,
अहा आसमाँ पर सियः अब्र छाया।
मचाया है मोरों ने क्या शोरे महशर,
पपीहों ने क्या पुर गजब रट लगाया।
बरुसे बरक़ नाज़ से क्या चमक कर,
है बादल के आँचल में मूँ को छिपाया।
तुझे शेख जिसने बनाया है मोमिन,
हमैं भी है हिन्दू उसी ने बनाया।
नज़र तूर पर जो कि मूँसा को आया,
वही नूर हम को बुतों ने दिखाया।
परीशां हो क्यों अब्र वे खुद भला तुम,
कहो किस सितमगर से है दिल लगाया॥8॥