तेरे नहीं लगैगी छींट / दयाचंद मायना
तेरे नहीं लगैगी छींट, भींट का तै सब झगड़ा झूठा सै
उसनै ब्राह्मण मत समझो, जो भीतरले में पाप राखै
अछूत और चण्डाल कहै, ऊपर तै मन साफ राखै
दुनियां नै भकावै पापी, झूठे हर के जाप राखै
अंधे माणस, मूर्खां कै, बंध आंखों कै पट्टी जा सै
हर के घर से एक आवैं, याड़ै जात बांटी जा सै
जैसा काम वैसा नाम, गत कर्मा की छांटी जा सै
सै एक जात, एक बात, एक बेल-बूटा सै
उनकी मुक्ति ना होती, जो झूठी बात घड्या करैं
पाप के कमाणे आळे, नरक बीच मैं पड्या करैं
ब्राह्मण नै ऊंचा बतलावै, जब मूर्ख माणस चड्या करैं
जो पापियां की संगत करै, वोहे पाप के बीच हो सैं
यम के दूत पकड़ कै खींचै, जहां नरक की कीच हो सै
कर्म ही सै ऊंचा होज्या, कर्म ही से नीच हो सै
उस परमेश्वर के घर पै, सबका एक ठाण खूंटा सै
सच्चा कहणा, सच्चा सुणना, यो माणस का धर्म हो सै
अछूत और चण्डाल जाण, जीव आत्मा ब्रह्म हो सै
मूर्खां नै बेरा कोन्या, ऊंचा अपणा कर्म हो सै
जो ईश्वर के भजन करै ना, उसनै सत्संगी कहै कौण
लिए-दिए तै काम चालज्या घर मैं तंगी कहै कौण
जो सच्चा भगत प्रेमी हर का, उसनै भंगी कहै कौण
कहकै इस दुनियां का प्यार-यार, मित्र खाऊ-लूटा सै
सतगुरु मुंशी कृपा करकै, चेले नै बताओ ज्ञान
धर्म की कमाई करै, वोहे हो सै बुद्धिमान
ऊंच-नीच का ना बेरा जिसनै, उसनै समझो मूढ़ नादान
साची बात घड्या करै सै, जो सतगुरु का मुण्डा हो सै
हर के घर पै, दर पै जाकै, सबका एक कुण्डा हो सै
देसां की बदमास ऊत बता, माणस का के भूण्डा हो सै
‘दयानंद’ साच्चे करै सै विचार, धार रस अमृत का घूंटा सै