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तेरे बिन / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
सुबह होती है
न साँझ
रात होती है न दिन तेरे बिन
सोचती हूँ यह शहर मुझे निकाले
इससे पहले निकल जाऊँ
यहाँ पूरी उम्र कैसे कटेगी
कटता नहीं जब पूरा दिन तेरे बिन
जाने को चली भी जाऊँ
पर जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ
किसके पास और कितने दिन तेरे बिन
आजकल-आजकल करते-करते
तेरे इंतज़ार में कट रहा जीवन
जानती नहीं कि कब तक
और कितने दिन तेरे बिन
तू अगर है तो बता कि कहाँ है
मैं पहुंचूंगी, ठहर जहाँ है
खोज लाऊँगी आकाश से, पाताल से एक दिन
मन नहीं लगता तेरे बिन
तूने किसी को चाहा नहीं
शायद इसी से नहीं जानता
कि किस मुश्किल से वक्त गुज़रता है
गिन-गिन दिन तेरे बिन
तय है तू मिलेगा मिलेगा तो
बताऊँगी कि कैसे बिताया
अँगुलियों के पोरवों पर गिन-गिन
हर पल हर दिन तेरे बिन