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तेसरोॅ-सर्ग / सिद्धो-कान्हू / प्रदीप प्रभात

सिद्धो-कान्हू कहै जेना होतै,
अंग्रेजोॅ से आय लेबै फड़ियाय
संताल जत्था तीन-धनुष सेॅ
अंग्रेजोॅ केॅ दै छितराय।

तेसरोॅ-सर्ग

विद्रोह उफान पर, भागलपुर कमिश्नर के बेचैनी।
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क्षेत्र जंगल पहाड़ी बड़ा मनोरम,
प्रकृति मोॅन लोभाबै छै।

गाछी के पत्ता सेॅ छनलोॅ,
रौंद सूर्यो के आबै छै।

बेर रहै गोधूली तखनी,
चरवाहा गीत गाबै छै।

गरदा सेॅ आकाशोॅ भरलोॅ,
चाँदोॅ धँधला लागै छै।

कुच्छु तारा सरंग्ड़ोॅ मेॅ,
जन्नें तन्नें झलकै छै।

गिरिडीह, दुमका, जामताड़ा,
सगरे सभा जमाबै छै।

आधा-आधी रात बीतलै,
नीदें सबकेॅ दाबै छै।

भागलपुर कमिश्नर के सोची-सोची,
मोॅन गेलै पगलाय।

सिद्धो-कान्हू के आगू चललै,
एक्को गो नैं चतुराय।

संताला गुरिल्ला युद्ध प्रशिक्षित,
आबै सिद्धो-कान्हू साथें।

राजमहल पहाड़ी जंगल-झरना,
पार करलकै सब्भेॅ बातें-बातें।

केनाराम महाजन के घोॅर दिश,
क्रान्तिकारी जत्था सिधियावै सब।

केनाराम के काम तमाम करै मेॅ,
नै लागलै कुच्छु देरी।

ई काम केॅ अंजाम दै मेॅ,
फूलों-झानों करलक तेजी।

सिद्धो-कान्हू के जत्था गोड़ोॅ मेॅ,
जेना लागै पंख लगाय।

पाकुड़ आमड़ापाड़ा के राह पकड़नें,
लागै जेना उड़लोॅ जाय।

दक्षिण सें उत्तर दिश चललै,
लगातार नै कॉहीं विराम।

दोसरोॅ दिन पहुॅची महाराजपुर के निकट,
आपनोॅ मीशन केॅ दै अंजाम।

हूल के जत्था, हत्या करलकै,
अंग्रेज महिला श्रीमती थोमस, सुश्री पेल।

पीरपैंती, सगरी गली के बीच सड़कॉे पर,
रेल कर्मचारी आरो यूरोपियन हेनेस्सी के हत्या भेल।

फूलों-झानों भेजै सूदखोर महाजन केॅ,
आँखी आगू यमलोक।

अन्यायी के नाश छै जरूरी,
कहिया कौनेॅ सकतैं रोंक।

आपनोॅ प्रण के बात वही पर,
फूलों झानों सबकेॅ बतलाबै।

वहीं क्षण आपनोॅ तेज कटारोॅ सेॅ,
महाजनों के नरक पहुँचाबै।

हिन्नेॅ चुड़ा मांझी अंग्रेजोॅ साथें,
गेलै खोजी-ढँढ़ी हारी।

सिद्धो-कान्हू केॅ खोजै मेॅ,
चुड़ा मांझी जंगल मारै पूरा छानी।

रहलै चुड़ा मांझी केॅ इनाम पावै के,
तखनी सब्भेॅ आस-अधूरा।

चुड़ा मांझी के बहिन छोटकी,
सब्भेॅ जानै छेलै।

संताली जत्था साथें राह पकड़ने,
जन्नें सिद्धो-कान्हू गेलै।

चुड़ा मांझी केॅ चुपके-चुपके,
सब्भें बात बताबै।

फेनु चुड़ा मांझी फौजी टुकड़ी लै,
वहीं ओर सिघियाबै।

सिद्धो-कान्हू के पता लगाबै,
पाकुड़ राजमहल पहाड़ी जंगल।

संताल जत्था वही मचैतै,
अंग्रेजोॅ सेॅ दंगल।

अंग्रेज सिपाही साथें निकलै,
रहै संग चुड़ा मांझी।

रस्ता-पैड़ा कॉटोॅ-कुशोॅ,
सगरे जंगल झाड़ी।

सेठ-महाजन नेॅ भेजी नेतोॅ,
भागलपुर कमिश्नर केॅ सनकाबै।

घुड़सवार सेना अंग्रजोॅ के,
पाकुड़ आमड़ापाड़ा दिश सिघियाबै।

भागलपुर सेॅ एक बारगी,
आबी फौंजी-दस्ता।

पाकुड़-साहेबगंज मेॅ छेकै छै,
आगूं-पीछू जंगल के रस्ता।

जासूसॅे तबेॅ पता बताबै,
होलै जबेॅ सबेरा।

राजमहल के पहाड़ी जंगल झरना,
सिद्धो-कान्हू, चांद-भायरों के डेरा।

घेरीलै छै राजमहल पहाड़ी जंगल झरना सौंसेॅ,
अंग्रेजों के पूरा फौंजी दस्ता।

निकली भागैं के नैं रहलै,
कोनों दै केॅ रस्ता।

सौ सवा सौ गुरिल्ला सैनिक,
सिद्धो-कान्हू साथें आय।

अंग्रेजों सेॅ लोहा लै लेॅ,
देलकै धूम मचाय।

सिद्धो-कान्हू कहै जेना होतै,
अंग्रेजोॅ सेॅ आय लेबै फड़ियाय।

संताल जत्थां तीर-धनुष आयुद्य सें,
अंग्रेजोंॅ केॅ दै छितराय।

कैप्टन ब्राऊन केॅ भेजलकै,
खूब लगैंने-आस।
भागलपुर के जिलाधिकारी,
रिचार्डसन के पास।

अंग्रेज सैनिक के माथा झलकै,
काल घटा घनघोर।

तहस-नहस होलै सेना सब,
हता-हतो कुछ लोग।

अंग्रेज अवसरवादी नेॅ,
बदलै आपनोॅ राह।

सैनिक बीचें दिखलाबै छै,
बनाबटी... उत्साह।

खिसियैली बिलाय खंभा केॅ नोचै जेना आय,
वोहिनोॅ बौखलाबै अंग्रेजोॅ सिद्धोॅ-कान्हू लग लाय।