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दोसरोॅ-सर्ग / सिद्धो-कान्हू / प्रदीप प्रभात

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दोसरोॅ-सर्ग

बिद्रोह के आरम्भ
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अठारह सौ पचपन ईस्वी के,
छेकै ई ठो बात।
संतालोॅ के जमलोॅ छेलै,
वहाँ बड़ोॅ जामात।
तीस जून अठारह सौ पचपन मेॅ,
फूकलोॅ गेलै हूल-बिगूल।

गवाही छ भोगनाडीह गॉव,
नै मिललै अंग्रेजोॅ केॅ छॉव।

महाजनेॅ ब्याजी प्रथा चलैलकै,
जे होलै जी-जंजाल।

सूद-ब्याज रोकै लेली,
एैलै एक महाकाल।

सिद्धो-कान्हू सोचै करना छै एैन्होॅ कुछ काम,
खूब कमाना छै इतिहास मेॅ नाम।

बसै जंगल-झाड़ संताल,
निर्भय आठोॅ याम।

बिगूल फूकी भोगनाडीह मेॅ,
लानै एक... तुफान।

ग्वारेॅ, तेली आरोॅ अन्य जाति नेॅ,
संतालोॅ केॅ उस्कैलकै।

संतालोॅ के जमलै एक दिन,
बरहेट, भोगनाडीह मेॅ जमात।

भोगनाडीह सेॅ चले जमात,
पंचकठिया तरफें सिघियावै।

भरलोॅ छेलै चारों तरफेॅ,
खाली जंगल... झारी।

सब लोग आपस मेॅ बतियाबै छै,
अंगिका, संताली, भाषा-भाषी।

सिद्धो-कान्हू, चांद, भायरोॅ,
भोगनाडीह के वासी।

संगठन खातिर सिद्धो-कान्हू,
फूलों-झानों भी साथ रहै।

हिरणपुर, लिट्टीपाड़ा, बरहेट, बोरियो,
गोड्डा, दुमका हाट सरैया घुमैं।

जामताड़ा, देवघर, नाला, जामा,
चांद, भायरो ई सब जग्धोॅ घुमबैया।

घुमी-घुमी जुटैलकै, बाहुबली,
धनुर्धर पहिलेॅ भैया।

जुटाय बाहुबली धनुर्धर केॅ,
देलकै ललकार अंग्रेजी केॅ।

सिद्धो-कान्हू नायक बनी,
कुहराम जबेॅ मचैलकै।

जान बचाबै खातिर भागें लागलै,
अंग्रेज सिपाही महाजन समुदाय।

शासन सता सब्भेॅ गेलै,
एक्केॅ पल मेॅ छितराय।

मलकाठोॅ मेॅ मुढ़ी दैकेॅ
दारोगा प्रताप नारायण केॅ करै हलाल।

ई दृश्य देखी अंग्रेज महाजन,
रियासत के सब्भेॅ लोग हड़कम्प।

सिद्धो-कान्हू जत्था आगू अंग्रेजों के,
चलले नै कोनोॅ षड़यंत्र।

मराड़ बुरू केरो बातोॅ मानी,
सिद्धो-कान्हू आगू आबै छै।

गलत प्रथा, कुरीति मेटाबै, खातिर,
सबके मन हरसाबै छै।

सिद्धो-कान्हू हुल-बिगुल फूकी केॅ,
आतंक खूब माचबै छै।

अंग्रेजोॅ केॅ दहलाबै लेली,
ढोल-नगाड़ा भी बजाबै छै।

संतालोॅ के बढ़लोॅ ताकत देखी,
रिचार्डसन, बरौस, पेन्टेड, चैपमैन घबराय।

देश भक्त केरो श्रेणी मेॅ,
सिद्धो-कान्हू नाम लिखाय।
पाँच महाजन उन्नीस सिपाही के हत्या सेॅ,
भै गेलै अंग्रेजोॅ लाचार।

बोरियो, फूलभंगा के बीचेॅ,
महाजनों के कै एक गॉव बरबाद।

अंग्रेज सैनिक सब संतालोॅ सेॅ,
मानेॅ लागलै ...हार।

संताल जत्था आगू बढ़लै,
राजमहल दिश सघियैलै।

सिद्धो-कान्हू जमात देखी,
मनें-मन-मुस्कैलैं।

भागलपुर कमिश्नर कुच्छु क्षण लेली,
होलै... बड़ी... उदास।

लागै जेना हुवेॅ लागलै,
हुनका संकट रोॅ आभास।

भागलपुर कमिश्नर नेॅ मि. बर्रोस केॅ,
सेनाध्यक्ष देलकै बनाय।

सेनाध्यक्ष बनी केॅ मि. बर्रोस नेॅ,
ठोकै आपनोॅ ताल।

सोलह जुलाई अठारह सौ पचपन केॅ,
मि. बर्रोस आरो संतालोंॅ मेॅ होलै भिडन्त।

सिद्धो-कान्हू कहै अंग्रेजोॅ सेॅ,
लड़बै जानी लेॅ जीवन पर्यन्त।

भिडन्त के खबर सुनतैं,
आबी धमकै मि. लॉयड।

फेरू जमै आखाड़ा,
पीरपैंती के पास।

अंग्रेज चाही रहलोॅ छेलै,
सिद्धो-कान्हू केॅ लौं जाल फसाय।

अंग्रेज देलेॅ रहै,
पग-पग जासूस लगाय।

फूलों-झानों के आगू,
अंग्रेजों के चतुराई भुतलाय।

बिगुल हुल के सब्भेॅ साथी,
आरू भोगनाडीह के लोग।

अंग-पुत्री फूलों-झानों,
महिला दस्ता के नायिका कहलाय।

सुनोॅ-सुनोॅ अंगधरा के भाय-बहिन,
सुनोॅ हो आदिवासी समुदाय।

अंग्रेज, महाजन हमरा सब ऊपर,
कहिनेॅ करै छै अन्याय।

अंग्रेजॅे आपनोॅ चालोॅ सेॅ,
सबकेॅ देलेॅ छै भटकाय।

हमरानी पर सूदखोर महाजन,
चोरी डकैती केरोॅ आरोप लगाबै छै।

यै खातिर आय, संताल यहाँ,
तीर धनुष, तलवार कटार लै जुटलोॅ छै।

जोहार, प्रणाम, अभिनंदन करनेॅ,
सिद्धो-कान्हू उतरै मंचोॅ सेॅ।

आमसभा के सब्भेॅ लोग,
जमलोॅ रहलै सचोॅ सेॅ।

दूर-दूर सेॅ संताल भायसीनी,
आम सभा मेॅ एैलोॅ छै।

फूलों-झानों बोलै देश प्रेम के,
ज्वाला एैजॉ भड़कै छै।

अंग्रेजोॅ सेॅ टक्कर लै लेॅ,
भुजा यहाँ पर फड़कै छै।

जुल्मी के जुल्म मिटाबै खातिर,
कबच हृदय के कड़कै छै।

पीरपैंती के निकट अंग्रजोॅ केॅ,
देलकै लड़तेॅ-लड़तेॅ धूल-चटाय।

हिन्दू-मियां संताल समुच्चा,
अगर एक नै होभोॅ भाय।

जोॅ एक नै होभोॅ
सब्भेॅ रसातल जैभोॅ

घुमी-घुमी फूलों-झानों,
सिद्धो-कान्हू कहै समझाय।

सात समंतदर पार करि केॅ,
एैलै केना अंग्रेज।

हमरा बीचेॅ दिखलाबै छै,
जौनेॅ अखनी पूरा तेज।

सिद्धो-कान्हू हूल केॅ
केना कोय भुलाय।

अंग्रेजोॅ केॅ तीतर-बितर करि,
देलकै धूम मचाय।

अंग्रेजोॅ केॅ तंग करै मेॅ,
जाति सब्भै बटाबै हाथ।

ग्वारोॅ, तेली, मुस्लिम सब्भेॅ जाति संथाल,
अंग्रेजोॅ लेली बनलै जी जंजाल।

पॉच महाजन के हत्या,
निर्ममता पूर्वक करलकै।

सात जुलाई अठारह सौ पचपन केॅ,
दारोगा महेशलाल केॅ हलाल करलकै।

धुन के मतबाला सिद्धो-कान्हू,
ऑखी के नींद हराम छेलै।

संताली गॉव घूमी-घूमी केॅ,
संगठन खूब बनाबै छेलै।

निर्दोष केॅ तकलीफ देना,
छै अनुचित अन्याय।

अन्यायी के जन, धन-संपद,
राज रसातल जाय।

अंग्रेज,महाजनोॅ के गोरखधन्धा,
हर वक्त सबकेॅ सुनाबै छेलै।

ओजस्वी भाषण सेॅ बदलै,
नवयुवकों सबके रस्ता।

तैयार करलकै ई क्षेत्रों मेॅ,
बड़का बलिदानी दस्ता।