भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोड़ऽ भईया हारल गारल / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
अँखिया में
भरि भरि लोर
आहले हइ भोर
भइया हो
चलऽ तनि गउआँ के ओर
कउन दुसमनमां
ई ठूठ करइ बगिया
झांपले गुदड़िया में
देश के जिनगिया
भूख सहइ जिया के मचोर
अरिया पर लोरे झोरे
हकासल बुतरूआ
सोना सन जुआनी जोर
जेठ दोपहरिया
टुटही मड़इया के चिजोर
लाज शरम धो-धो
पीअइ जुठखोरवा
जुल्मी के बफादार
टांगऽ हइ बंदुकवा
धरती माय के अँखिया में लोर
उगि गेलइ टुहटुह
ललकी किरिनियाँ
तोड़ऽ भइया हारल-गारल
सब अपन निनियाँ
होबउ लगलो सगरे इंजोर