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तोड़ कर अहद-ए-करम न-आशना हो जाइए / हसरत मोहानी

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तोड़ कर अहद-ए-क़रम न-आशना हो जाइए
बंदा परवर जाइए अच्छा ख़फा हो जाइए

राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़ारा-ए-सितम
होंठ अपने काट कर फ़ौरन जुदा हो जाइए

जी में आता है के उस शोख़-ए-तघाफुल केश से
अब न मिलिए फिर कभी और बेवफा हो जाइए

हाए रे बे-इख्तियारी ये तो सब कुछ हो मगर
उस सरापा नाज़ से क्यूँ कर ख़फा हो जाइए