तोड़ लिए हैं सारे बन्धन
कैसे रिश्ते कैसे बन्धन
कच्चे धागों के से बन्धन
कब तक साथ निभाते बन्धन
बन्धन मुक्त हुए हम आख़िर
दिल पर बोझल गुज़रे बन्धन
आज उडूंगी नील गगन में
खोल दिए हैं पांव के बन्धन
हर पल तुम को ही सोचूं मैं
ये कैसे हैं दिल के बन्धन
चुटकी भर सिन्दूर से देखो
बंध गए कितने सारे बन्धन
कु़दरत ने जो बांध दिए थे
क़िस्मत बन कर चमके बन्धन
बिड्ढ का प्याला हंस कर पीना
ऐसे भी थे प्रेम के बन्धन
अरमानों का गला दबाते
झूठे रिश्ते झूठे बन्धन
पंछी थे जो नील गगन के
उन को डाले हमने बन्धन
ख़त पढ़ना और दिल का धड़कना
दिल को दिल से जोडे़ बन्धन
साधू बन कर जिन से भागे
वक़्त ने फिर वो डाले बन्धन
सींचा जिन को ख़ून से हमने
पल ही में वो टूटे बन्धन