तोहरा ले जम हियई / जयराम दरवेशपुरी

की बूझऽ हा तोहरा से कम हिअइ
उतरऽ मइदान में अजमावऽ की हिअइ

तोहर बिख दाँत के धार हियो तोड़इ ले
दुख छल सब के लगल हियो जोड़इ में
खूटल अखाढ़ा में तोहरा ले यह हिअइ

तू हा धइल महा बड़का छिछोर
समइये पर हो गेलो हे भंडा फोर
एकरे में लगल-लगल हम तऽ बेदम हिअइ

तोर गीदड़ भभकी से हलूं मजबूर
अन्हरजाल में फंसल कमियाँ मजदूर
श्रम के हम पालल की न´ बेशरम हिअइ

हम सब अब हाथ मिला डटल ही ठाढ ही
तनि सन छुपल दाव लगा आड़ ही
बूझऽ हा घास फूस हम कि नरम हिअइ।

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