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थके पर छके न रस-प्यासे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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थके पर छके न रस-प्यासे।
रहत सतत रस-पान-निरत नित नूतन भाव विकासै।
ज्यौं-ज्यौं पियत प्यास त्यौं बाढ़त, मधुर स्वाद उदभासै॥
महाभाव-रसराज-सिरोमनि दो‌ऊ प्यारी-प्यारे।
लीला-रस-रत लखि सखि प्रमुदित भूली अग-जग सारे॥