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दयार-ए-शौक़ वहशत का अब समाँ नहीं होगा / 'महताब' हैदर नक़वी
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दयार-ए-शौक़1 वहशत का अब समाँ नहीं होगा
समन्दर के लिए अगले बरस तूफ़ाँ नहीं होगा
सिमटते मंज़रों में अब कोई आवज़-ए-पा2 कैसी
दरख़्तों के लिए पैग़ाम-ए- रुत इमकाँ होगा
बहुत मुश्किल पड़ेगी कार-ए-दुनिया से सनासाई
सफ़र जो पावँ से लिपता है अब आसाँ नहीं होगा
फ़िराक-ओ वस्ल की चादर पे बोसों के निशाँ होंगे
मुकद्दस3 शब की रुख़-तहरीर का उनवाँ नहीं होंगे
अकेला फिर रहा हूं दर्द की तारीक गलियों में
सुना करता था ये कूचा कभी वीराँ नहीं होगा
1-इच्छित जगह 2-पगध्वनि 3- पवित्र