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दरद से आमुल / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
इचना पोठी ढेर मारला
कइला बड़ तइयारी
हाथ चीर के छिटक गेलो
छानल तोर बोबारी
जेकर भाग में बदल हइ लक्ष्मी
ओकरे घर अब जइतो
बोबारी तऽ दूर गेलो
इचना भी ठिसुअइतो
समय हेराल कहाँ मिलतो
नोंचऽ अप्पन दाढ़ी
काम न देतो आखिर में भी
सुग्गा नियन पढ़ावल
बीए एमए पढ़ि पढ़ि के भी
पानी करऽ डेंगावल
केकरो न´ बूझऽ हा अप्पन
धइले हा सबे गियारी
मूंगनी टाटकइ के फेरा में
गोटी अपन टिकइला
पूरा भीतर मार बजड़लो
जिनगी भर ओझरइला
दरस से आकुल
होके सुनवऽ लगला हे लाचारी।