भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँसुओं में दर्द है औ’
दर्द मेरी आह में है !

ख़ुद रही जो जल शमा क्या
दे सकी अपने शलभ को,
किन्तु, फिर भी भेद कुछ
प्रियतम मिलन की चाह में है !
आँसुओं में दर्द है औ’
दर्द मेरी आह में है !!

शूल को मैं फूल कहता,
यदि न होता फूल सम्मुख,
फूल हैं पग में, हृदय में,
फूल किन्तु निगाह में हैं !
आँसुओं में दर्द है औ’
दर्द मेरी आह में है !!

मैं दुखी हूँ — क्यों दुखी हूँ,
मैं दुखी तो क्यों दुखी मन,
रो पड़े जो हँस न पाए,
सोच पुलकित, किन्तु, यौवन !
पापियो, लो, पुण्य लूटो,
पुण्य आज गुनाह में है !
आँसुओं में दर्द है औ’
दर्द मेरी आह में है !!