दर्शन-चतुर्विध / रस प्रबोध / रसलीन
दर्शन-चतुर्विध
रति आलम्बन होत है दम्पति दरसन पाइ।
याते दरसन को धरौं आलंबन मैं लाइ॥593॥
सो दरसन अंथन मते बरनत हैं कबि चारि।
श्रवन सपन अरु चित्र पुनि सौतुष होत बिचारि॥594॥
श्रवनन हीं दरसन बनै पै दंपति जुत आइ।
यह रति आलम्बन करत यातें बरनो जाइ॥595॥
श्रवन दर्शन उदाहरण
जब तें मोहि सुनाइ तूँ कही कान्ह की बात।
तब तें दृग मृग लौं चले कानन ही को जात॥596॥
तू तिय छबि मद जो दई श्रवन चषक को प्याइ।
सो मो हिय अति छति वै नैनन झलकी आइ॥597॥
स्वप्न दर्शन-उदाहरण
जागत जोरु जो पाइए दौरि लागिए साथ।
सपने को चितचोरु क्यौं आवै अपने हाथ॥598॥
वाम चोरुटी की कथा कहिये काहि सुनाइ।
जागेह नहि मिलत है सपनेहु गई चुराइ॥599॥
चित्र दर्शन-उदाहरण
चित्रहि चितवत चित्र लौं रही एकटक जोइ।
मित्र बिलोकति रावरी कहौ कौन गति होइ॥600॥
निरखि निरखि जिहि चित्र हरि राखत हौं हिय लाइ।
तेहि देखाइ कै निज गरे डारे पाय बनाइ॥601॥
सौतुष दर्शन-उदाहरण
खिनि पिय मन ािनि पिया मन निरख जात यौं भोइ।
ज्यौ खिनि नदि जल समुद जल नदी समुद जल होइ॥602॥
ज्यौं पिय दृग अलि भँवति तिय बदन कमल की ओर।
त्यौं पिय मुख ससिस लखि भये तिय के नैन चकोर॥603॥