भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दाख पकी तब चोँचौ पकी जब बीन बज्यो बहिरो भयो कानो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
Kavita Kosh से
दाख पकी तब चोँचौ पकी जब बीन बज्यो बहिरो भयो कानो ।
मेनका आय मिली तबहीँ जब देह ते कामहु दूरि परानो ।
जैसोई चाहत तैसो करै जग जाहिर है बिधि को यह बानो ।
पारसा पायो परयो जो कहूँ तो जहान ते लोह को लेस हिरानो ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।