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दादुरों की बोलियाँ फुहार सरसा रही / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
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ध्वनित हुयी धरा सकल आज ध्वनियों से,
दादुरों की बोलियाँ फुहार सरसा रही।
उमड़ घुमड़ घन घिर आये गगन में,
ऋतु सुकुमारी बूँद-बूँद बरसा रही।
चमक चमक चपला चमक चम चम,
रजत कतार में आमद दरसा रही।
फूल, पात, तरु, डालियाँ हवा में झूल झूल,
सावन के आगमन से ज्यों हरषा रही।