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दिए तो है रौशनी नहीं है, खड़े हैं बुत ज़िन्दगी नहीं है
Kavita Kosh से
दिए तो है रौशनी नहीं है, खड़े हैं बुत ज़िन्दगी नहीं है
ये कैसी मंजिल पे आ गए हम, कि दोस्त हैं, दोस्ती नहीं है
चमक रहे हैं हजारों तारे, भले ही हैं चाँद और सूरज
तलाश है जिस किरन की हमको, बस एक समझो वही नहीं है
बुझा-बुझा सर्द -सर्द-सा कुछ, है अब भी सीने में दर्द-सा कुछ
पड़े हैं मुँह ढँक के हम भले ही, मगर तबीयत भरी नहीं है
हम अक्स हैं तेरे आईने के, कभी तो बढ़कर गले लगा ले
रहे हों खामोश, प्यार की पर हमारे दिल में कमीं नहीं है
गुलाब! जिसने भी हँसके देखा, उसीके तुम उम्र भर रहे हो
जो सच कहें तो सभी हैं अपने, यहाँ कोई अज़नबी नहीं है