भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन को क्यूँकर रात करें / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दिन को क्यूँकर रात करें
सपनों का निर्यात करें
कुछ कमियाँ रह गईं अगर
तो उन पर आघात करें
सहते जाना ठीक नहीं
थोड़ा तो प्रतिघात करें
वक्त गुज़रता जाता है
इस को कुछ सौगात करें
मिला किये नित औरों से
अब तो खुद से बात करें
मंदिर मस्जिद साथ रहें
कुछ ऐसे हालात करें
बहुत अँधेरा रहा यहाँ
आओ नया प्रभात करें