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दिन जमाई-सा / रमेश रंजक
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चला आया दिन
जमाई-सा
इसे क्या दें
करें कैसे भाल पर टीका
टकों के बिन
चला आया दिन
डाल दो परदा न दीखे घर,
घर—
जहाँ टूटी हुई मंजी
फट चादर
भेड़ दो खिड़की रसोई की
शक्ति जिसमें नहीं बाक़ी
चार लोई की
चला आया दिन
कसाई-सा
इसे क्या दें
हड्डियाँ गिन-गिन ?
क्या करें
ख़ुद को पड़ोसी-द्वार पर छोटा
या करें—बौने बहाने को
किसी भी रास्ते मोटा
प्रश्न मुझको लग रहा अजगर
क्रोध आता है कि इसके
मार दूँ पत्थर
चला आया दिन
किसी नाकाम भाई-सा
इसे क्या दें ?
कुछ नहीं मुमकिन
चला आया दिन