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दिन नहिं चैन, रैन नहिं निद्रा / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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दिन नहिं चैन, रैन नहिं निद्रा, भूख-प्यासका भान नहीं।
हियमें जलती आग अमित, पर उसका भी कुछ जान नहीं॥
रोती आँखें नित्य, बरसता रहता नित्य नेहका मेह।
याद नहीं, फरियाद नहीं कुछ, तेज उज्ज्वलित जर्जर देह॥