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दिन महीने साल उनको याद ही करते रहे / मृदुला झा
Kavita Kosh से
लौट आने की अभी तक राह हम तकते रहे।
दहशतों के खौफ़ को जड़ से मिटाने के लिएए
आग की लपटों से होकर कारवां चलते रहे।
आज के हालात पर जब उनसे कुछ पूछा गया
खूबियों को छोड़ कर वे खामियाँ गिनते रहे।
क्या मिला अधिकार है आघात करने के लिएए
कोख में ही बेटियों के प्राण क्यों हरते रहे।
जालिमों के जुल्म को कब तक सहें बोलो ष्मृदुलश्
चुप खड़े थे हम मगर इल्ज़ाम वो मढ़ते रहे।