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दिल्ली के जाने का समय / शलभ श्रीराम सिंह

बचपन की मुस्कुराहटों पर
रखे जा रहे हैं पत्थर
गिरवी रखे जा रहे हैं जवानी के सपने
बुढ़ापे की उम्मीदों को धोखा दिया जा रहा है
दिन-रात ।

तकनीकी नाकेबन्दी की जकड़ में है गंगा
यमुना के गले में उग रही हैं कंकड़ों की फ़सल
समुद्र को अलविदा कहने पर
मजबूर की जा रही है नर्मदा ।

गोमुख का भूगोल टेढ़ा हो रहा है
टेढ़ा हो रहा है हरि की पौड़ी का भूगोल
हरिद्वार का भूगोल टेढ़ा हो रहा है ।

मेरठ के जाने का समय है यह
समय है कानपुर, प्रयाग, पटना और कलकत्ता के जाने का ।
दिल्ली के जाने का समय है यह ।

सरस्वती-पथ का सरण करने वाली है गंगा ।