दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै / विरेन सांवङिया
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
सांवङ है यहाँ गांव मेरा और सिधी राही घर की रै
माँ बापू का प्यार मिलै आङै दादी लाड लडावै सै
खुले आँगन खुली गलियां खङी फसल लहरावै सै
नन्हे बालक देख हांडते रै याद बचपना आवै सै
चूल्हे धौरै मार पलाथी हम चटनी रोटी खावैं सै
देशी खाणा देशी बाणा किते मौज ना म्हारे बरगी रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
सौर सबेरै करै परिंदे चंचल मन नै मोह जा सै
देख रास्ते औंस भरे रै खेता मै मन खो जा सै
सुबह शाम जब हौवै आरती प्रभू प्रसन्न होजा सै
चांद चांदनी छटा बिखेरै छाता पै सब सोजा सै
हैं कौरे मटके खाट घली और ठंडी छांँ सै बङ की रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
डेरे मन्दिर सति समाधि सैयद और शिवाला है
नल कूऐ और जोहङ बणे हर पान्ने मै धर्मशाला है
घर घर मै है मुर्हा झोटी एक गऊआं की गौशाला है
आँगनवाड़ी स्कूल बणे चलै ट्यूशन और पाठशाला है
है बेटी का सम्मान घणा जैसे पगड़ी होती सर की रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
बसै बतिसी मै गाम म्हारा प्रधानी दादा लाई रै
मानहेरू का टेसन लागै बौंद के पुलिस सिपाही रै
बगै जीटी रोङ रै धौरे कै जा नौ गामा नै राही रै
बारह गाम की सीम लागती लागी नहर भी भाई रै
हैं ध्वज लहराते मंदिरा के शान बणै अम्बर की रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
बामण बणिए जाट बसे आङै बसरे ठाकर भाई सै
फिरणी उपर बसे बाल्मीक कुछ एक स्यामी भाई सै
जागङा लुहार हरिजन बसरे बसरे प्रजापत नाई सै
हैं अड्डे उपर भाट बसे एक बस्ती नई बसाई सै
मणियारे जोगी डूम बसे कई जात और भी बसगी रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
सांग रागनी दंगल होते आङै मेले रौनक लावै सै
दौङ देखते बलधां की कई घोङी यार नचावैं सै
भंडारे आयोजित करते कई कावङ भी रै लावैं सै
होली दिवाली खास पर्व पै भाई फौजी छुट्टी आवैं सै
म्हारी चाची ताई करै कढाई कई भाभी रहैं सै बरती रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
राम रमी का लहजा सुथरा मेहनत की सब खावैं सै
करङे होके करै लामणी कई जाके शहर कमावै सै
अस्सी नब्बै होए साल के बुजुर्ग इतिहास दौहरावैं सै
क्यूकर बसा यो गाम म्हारा वे साची साच बतावैं सै
किते जी लादे इस दुनिया मै ना म्हारे जैसी धरती रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै
ना बंगले गाडी शौहरत रै ना सोची नाम कमाणे की
रही एक ऐ टीस रै जिंदगी मै सांवङ समर्थ बणाणे की
जिस माटी मै जन्म लिया आङै ईच्छा मुङ कै आणे की
सुख तै बसियो गाम मेरा मेरी या ए सोच ठिकाणे की
इस विरेन तेरी कविताई नै चाह सारे गाम कै करदी रै
दिल्ली रोहतक आओ भिवानी शहर दादरी चरखी रै