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दिल्ली होने से तो अच्छा है / विनय दुबे
Kavita Kosh से
मैं पहाड़ देखता हूँ
तो पहाड़ हो जाता हूँ
पेड़ देखता हूँ
तो पेड़ हो जाता हूँ
नदी देखता हूँ
तो नदी हो जाता हूँ
आकाश देखता हूँ
तो आकाश हो जाता हूँ
दिल्ली की तरफ़ तो मैं
भूलकर भी नहीं देखता हूँ
दिल्ली होने से तो अच्छा है
अपनी रूखी-सूखी खाकर
यहीं भोपाल में पड़ा रहूँ