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दिल जो घूमा करता था आवारा-सा / डी. एम. मिश्र
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दिल जो घूमा करता था आवारा-सा
टूटा तो वापस लौटा बेचारा-सा।
जाने क्यों ली उसने आँखें फेर मगर
वेा तो था मेरी आँखों का तारा-सा।
नाम के मेरे बहुतेरे मिल जायेगे
रूप किसी का लेकिन नहीं हमारा-सा।
कब बेहया कहे, कब सदाबहार कहे
जग यह कब किस पर बरसे अंगारा-सा।
तिनका भले सहारा बनता औरों का
खुद फिरता बेचारा मारा-मारा सा।