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दिल में मेरे न खुशी की कोई बारात हुई / रंजना वर्मा
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दिल मे मेरे न खुशी की कोई बारात हुई
मेरे नगमों को मेरे दर्द की सौगात हुई
आ भी जाओ कि है सूनी मेरे दिल की दुनियाँ
तुम जो आ जाओ तो समझूँ की कोई बात हुई
अब तो ख़्वाबों में भी आँखें हैं तरसती रहतीं
देख लूँ तुम को तो जानूँ कि मुलाक़ात हुई
झोलियाँ हमने भी फैलायीं मसर्रत के लिये
रब ने देखा न इधर ग़ैरों को ख़ैरात हुई
कौंध दिल मे गयी तस्वीर तुम्हारी जिस दिन
खुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई
हमने शायद है तुम्हें प्यार की मंज़िल दे दी
है इसी से क्या ज़माने में ये औकात हुई
कैसी शतरंज की बाजी ये बिछाई तुमने
तुम ही जीता किये अपनी तो सदा मात हुई