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दिल से लूंगा मैं काम रहबर का / इमाम बख़्श 'नासिख'
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दिल से लूंगा मैं काम रहबर का
क्या पता चाहिए तेरे घर का
हाल लिखता हूं दीद-ए-तर का
मौज-ए-दरिया है तार मुस्तिर है
था जो यूसुफ़ख हुआ न वो भी अज़ीज़
क्या ब्रादर को ग़म ब्रादर का
मस्त कहते हैं जिसको अबर-ए-बहार
गोशा है मेरे दामन तर का
जब हुआ गौर में अज़ाब-ए-फ़शार
ध्यान आया किनार-ए-मादर का
यद-ए-बेज़ा से हाथ आई ये बात
हुस्न मुहताज कब है ज़ेवर का
फ़स्ल-ए-गुल में हो शौक़ से उरियां
वहशियों को हुक्म है पयम्बर का
उम्र-ए-जावेद छोड़ कर ली मौत
देखना हौसला सिकंदर का
नक़्श-ए-पा हो बजाए नक़्श-ए-जबीं
सर है मुश्ताक तेरी ठोकर का
वो सही क़द है मुझ से तलब-ए-दिल
सरो को शौक़ है सनोबर का
क्या है ‘नासिख़’ जवाब-ए-ख़त का जिक्र
न मिला एक पर कबूतर का