भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिव्य ज्योति-मण्डल उद्भासित किरणें / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग सारंग-ताल त्रिताल)
दिव्य ज्योति-मण्डल उद्भासित किरणें छिटक रहीं सब ओर।
 द्वादश दल शुभ कमल उसीमें शोभित श्री-सुषमा, सिरमौर॥
 कमल मध्य सुविराजित सुर-‌ऋञ्षि-मुनि-‌आराध्य विष्णु भगवान्‌।
 चिदानन्दमय नीलमेघ-तन पीताबरधर वर द्युतिमान॥
 दिव्य मुकुट, कुण्डल, कौस्तुभमणि, मुक्त-रत्न सुशोभित हार।
 चक्र सुदर्शन, गदा, शङ्ख, सरसिज-भूषित विशाल भुज चार॥
 मधुर हास, मुख-कमल मनोहर, नेत्र सुधावर्षी सुविशाल।
 जयति-जयति जय अखिल भुवनपति, तिलक तिमिर-हर भ्राजत भाल॥