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दीन धर्म नै छोड़कै दुनियाँ / दयाचंद मायना

दीन धर्म नै छोड़कै दुनियाँ, बेईमान की ओड़ भाग ली
बचियो रै बचियो लोगो, बारूद के मां, आग जाग ली...टेक

टांग उघाड़ी कसी लंगोटी
ल्याज शर्म की गर्दन घोटी
एक भैंस गारा म्हं लोटी, सारी खोलां करी दागली...

लय, सुर, रंगत, खटकण लागी
सारी दुनियाँ मटकण लागी
रीस कोयल की पटकण लागी, कट्ठी होकै घणी कागली...

बेसुरे सभा म्हं मुँह बावैं सैं
ये गाणा उलट-पुलट गावैं सैं
नुगरे बैठ्या चाह्वैं सैं, पर थ्यावै कोन्या सीट आगली...

सतगुरु मुंशी अमर जड़ी थी
संत-सिद्धों की नजर पड़ी थी
‘दयाचन्द’ नै बात घड़ी थी, आज मेहर सिंह की छाप लागली...