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दीपों से शोभित है धरती / बाबा बैद्यनाथ झा
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दीपों से शोभित है धरती, जग प्रसन्न जन-जन मतवाला।
आज अमावस पूनम लगती, चहुँदिशि है स्वर्णिम उजियाला।।
गाँव शहर की हुई सफाई, लगे स्वर्ग सी स्वच्छ धरा अब,
मानव ने संकल्पित होकर, अद्भुत रूप यहाँ रच डाला।
रंग विरंगी देख सजावट, सबका मन होता है हर्षित,
नीले पीले लाल पुष्प हैं, नहीं एक भी दिखता काला।
दिव्य रँगोली लुभा रही है, प्रमुदित हो माँ लक्ष्मी आए,
वर देकर ऐश्वर्य बढ़ाए, तब होगा हर दृश्य निराला।
ज्ञान दीप जो सदा जलाता, पूर्ण समर्पित होकर बाबा
उसका रक्षक बन जाते हैं, खुद ही आकर मुरलीवाला।