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दुख भरे नयनों से बहते नीर हैं / मृदुला झा
Kavita Kosh से
ग़म जदों की भी वे हरते पीर हैं।
जो कभी थे आँख के तारे बने,
बन गए वे पाँव की जंजीर हैं।
जान पर जो खेले गैरों के लिए,
लोग कहते हैं उन्हें ही वीर हैं।
जो थे दुनियाभर से ठुकराये हुए,
आज वे ही सब के दिल के हीर हैं।
आज के हालात को पढ़ते हुए,
हम बनाते कल की भी तस्वीर हैं।