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दूर दुश्मन का ठिकाना हो गया होता / रंजना वर्मा
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दूर दुश्मन का ठिकाना हो गया होता
एक अपना आशियाना हो गया होता
धर्म ईश्वर जाति की खातिर न जो लड़ते
देश का मौसम सुहाना हो गया होता
सामने आ कर अगर एक बार लड़ लेते
आज हिम्मत आजमाना हो गया होता
फिर गगन में गूँज उठते गीत खुशियों के
प्यार का कोई तराना हो गया होता
चंद टुकड़ों के लिये लड़ता नहीं कोई
गैर को अपना बनाना हो गया होता
सीखते कर्तव्य वेदों से पुराणों से
कृष्ण की गीता पढ़ाना हो गया होता
बादलों को कर परे रवि की किरण आती
सुप्त कलियों को खिलाना हो गया होता
पीर कृषकों के हृदय की जान यदि पाते
दूर दुख कर के मनाना हो गया होता
मानवी अभिवृत्तियाँ सब मर गयीं जैसे
अन्यथा सुन्दर जमाना हो गया होता