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देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना / हसरत मोहानी

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देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना
शेवा-ए-इश्क़<ref>इश्क़ की परंपरा</ref> नहीं हुस्न को रुसवा करना

इक नज़र ही तेरी काफ़ी थी कि आई राहत-ए-जान
कुछ भी दुश्वार न था मुझ को शकेबा<ref>सांत्वना देना</ref> करना

उन को यहाँ वादे पे आ लेने दे ऐ अब्र-ए-बहार
जिस तरह चाहना फिर बाद में बरसा करना

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रख ले
दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना

कुछ समझ में नहीं आता कि ये क्या है 'हसरत'
उन से मिलकर भी न इज़हार-ए-तमन्ना करना

शब्दार्थ
<references/>