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देखो जी देखो एक बार इस तरफ़ देखो / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
देखो जी देखो इक बार इस तरफ़ देखो
ये दिल बना है शीशे का
पत्थर पे इस को मत फेंको
छोड़ो जी छोड़ो ऐसी बनावटी बातें
हम ने तो ऐसी उलझन में
काटी हैं सैंकड़ों रातें
बहारों को आये हुए चार दिन
हमें दिल लगाये हुए चार दिन
देखो न तोड़ो ऐसे सुहाने सपने को
ये दिल बना है शीशे का ...
दुआ दो कि ये दिल रहम कर गया
कहो ये कि जादू असर कर गया
जादू है किस का मालूम नहीं अपने को
ये दिल बना है शीशे का ...