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देख लो मुझको आईना हूँ मैं / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
देख लो मुझको आईना हूँ मैं
होठ सी कर भी बोलता हूँ मैं
पूछती रहती हूँ पता ख़ुद से
एक मुद्दत से लापता हूँ मैं
आईने में नहीं हूँ मैं मौजूद
अस्ल क़िरदार से जुदा हूँ मैं
हादसे क्या बुझायेंगे मुझको
एक उम्मीद का दिया हूँ मैं
सच तो ये है की इस कहानी में
इंतेहा तू है. इब्तिदा हूँ मैं
सब मुझे ढूँढ़ने से है क़ासिर
इक अजब शहरे-गुमशुदा हूँ मैं
राह मंज़िल की जो दिखाता है
उस मुसाफ़िर का नक्शे-प़ा हूँ मैं
देखने वाले मुझको ग़ौर से देख
अपनी तस्वीर से जुदा हूँ मैं
लोग कुछ भी कहे सिया लेकिन
मैं समझती हूँ ख़ूब क्या हूँ मैं