भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देगा न एक कोई इशारा तुम्हारे बाद / बाबा बैद्यनाथ झा
Kavita Kosh से
देगा न एक कोई इशारा तुम्हारे बाद।
हमको नहीं मिलेगा सहारा तुम्हारे बाद।
सब कामधाम बंद तो होना है लाज़िमी,
फिर हम बने रहेंगे नकारा तुम्हारे बाद।
मझधार में ही आज से रहना है अब हमें,
मिल ही नहीं सकेगा किनारा तुम्हारे बाद।
बेमौत हम मरेंगे सनम भूख प्यास से,
मुमकिन कभी न होगा गुज़ारा तुम्हारे बाद।
बेदर्द इस क़दर बने 'बाबा' चले गये,
रोता रहा ख़ुदा को पुकारा तुम्हारे बाद।