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देश हित जो कष्ट सहने के लिये तैयार है / रंजना वर्मा

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देश हित जो कष्ट सहने के लिये तैयार है।
देश उस का मान करने के लिये तैयार है।

मौसमों की चोट सहकर थी बनी पत्थर मगर
अब धरा सजने सँवरने के लिये तैयार है।।

देखना आकर कोई राही मसल जाये नहीं
एक कलिका फूल बनने के लिये तैयार है।।

है कभी कुर्बानियाँ कीमत न अपनी मांगतीं
आज जनता मोल भरने के लिये तैयार है।।

लोभ का चश्मा लगाये है पड़ोसी तो यहाँ
हर किया वादा मुकरने के लिये तैयार है।।

हैं समझते जो इसे कमजोर वो अब जान लें
देश यह दुश्मन से लड़ने के लिये तैयार है।।

जाति मजहब वर्ग में मत और उलझाओ हमें
देशवासी यों न डरने के लिये तैयार है।।