भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोऊ गल बाहीं दिये / प्रेमघन
Kavita Kosh से
दोऊ गल बाहीं दिये ठाढ़े जमुना तीर।
मंगलमय प्रातहि उठे राधा श्री बलबीर॥
राधा श्री बलबीर दोऊ दुहुँ रस अनुरागे।
झँपत पलक द्रिग अरुन भये घूमत निशि जागे॥
बद्री नारायन छुटि कच शुभ राजत सोऊ।
चुटकी दै जमुहात खरे अरसाने दोऊ॥