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दोपहर / निदा फ़ाज़ली

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जिस्म लाग़र, थका-थका चेहरा
हर तबस्सुम पे दर्द का पहरा

हिप्स पर पूरी बेंत की जाली
जेब में गोल मेज़ की ताली
हाथ पर रोशनाई की लाली

उड़ती चीलों का झुण्ड तकती हुई
तपते सूरज से सर को ढँकती हुई
कुछ न कुछ मुँह ही मुँह में बकती हुई

खुश्क आँखों पर पानी छपका कर
पीले हाथी का ठूँठ सुलगा कर

दोपहर चाय पीने बैठी है
चाक दामन के सीने बैठी है