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दोस्ती अपनी कभी टूटे नहीं / मृदुला झा
Kavita Kosh से
दोस्ती अपनी कभी टूटे नहीं,
साथ अपनों का कभी छूटे नहीं।
लहलहाते पौध हैं हम हिन्द के,
गैर कोई यह चमन लूटे नहीं।
लाख शिकवा है मुझे उनसे मगर,
ये दुआ है आसरा छूटे नहीं।
चँद तनहा घूमता आकाश में,
हैं सितारों के कहीं बूटे नहीं।
जुल्म और आतंक का यह जलजला,
कुफ्र बनकर फिर कभी फूटे नहीं।
जुस्तजू उनकी सदा दिल में रही,
प्यार के एहसास भी झूठे नहीं।
बेमुरौवत बेवफा तो हम नहीं,
तुम भी कह सकते हो हम झूठे नहीं।