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दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 47

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दोहा संख्या 461 से 470


 
सुधा साधु सुरतरू सुमन सुफल सुहावनि बात।
तुलसी सीतापति भगति सगुन सुमंगल सात।461।


 भरत सत्रु सुदन लखन सहित सुमिरि रधुनाथं ।
करहु काज सुभ साज सब मिलिहि सुमंगल साथ।।462 ।


 राम लखन कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान।
 लच्छि लाभ लै जगत जसु मंगल सगुन प्रमान।463।


 अतुलित महिमा बेद की तुलसी किएँ बिचार।
जो निंदित भयो बिदित बुद्ध अवतार।464।


बुध किसान सर बेद निज मतें खेत सब सींच ।
तुलसी कृषि लखि जानिबो उत्तम मध्यम नीच।465।


सहि कुबोल साँसति सकल अँगइ अनट अपमान।
तुलसी धरम न परिहरिअ कहि करि गए सुजान।466।


अनहित भय परहित किएँ पर अनहित हित हानि।
तुलसी चारू बिचारू भल करिअ काज सुनि जानि।467।


 पुरूषारथ पूरब करम परमेस्वर परधान।
 तुलसी पैरत सरित ज्यों सबहिं काज अनुमान।468।


चलब नीति मग राम पग नेेह निबाहब नीक।
तुलसी पहिरिअ सो बसन जो न पखारें फीक।469।


दोहा चारू बिचारू चलु परिहरि बाद बिबाद।
सुकृत सीवँ स्वारथ अवधि परमारथ मरजाद।470।