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दो घड़ी की हँसी-ख़ुशी के लिए / गुलाब खंडेलवाल

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दो घड़ी की हँसी-ख़ुशी के लिए
हम हुए क़ैद ज़िन्दगी के लिए

वह तड़पने का खेल देखा करें
ज़िन्दगी हमको दी इसीके लिए

देवता हम नहीं, न पत्थर हैं
माफ़ कुछ तो है आदमी के लिए

कारवाँ उम्र का निकल भी गया
रह गए बैठे हम किसीके लिए

कब सुबह होगी, कब खिलेंगे गुलाब
दिल तड़पता है उस घड़ी के लिए