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दो शब्द थे हम / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
भूल जाना तुम !
एक खाली जगह के
दो शब्द थे हम
(मौसम)
जिन्हें पढ़ता था मिलाकर
उन दिनों को सिर हिलाकर
भूल जाना तुम !
भूल जाना
भूख में जैसे कभी रोटी चुराई थी
भूल जाना
कसे बन्धन में कभी जो क़सम खाई थी
बैठ दुहरी छाँह में गुम-सुम
अकारण घास के तिनके उठाना
भूल जाना तुम !
भूल जाना
वह छुअन जो धुल नहीं पाई नहाने से
भूल जाना
जो न भूला जा सका ओछे बहाने से
एक मद्धिम आँच के साँचे ढले वे दिन
जो न हो पाए अभी तक गुम
भूल जाना तुम !
भूल जाना
एक ताज़ी उम्र का रस, रूप, गन्धित मन
भूल जाना
एक नँगी बाँह का घेरा, बदन चन्दन
भूल जाना, भूल जाना, रेत का कुमकुम
एक खाली जगह के दो शब्द थे हम
भूल जाना तुम !