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द्रष्टा / दिनेश कुमार शुक्ल

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द्रष्टा
देखा है तुमने
उसको कभी
अवाक्
ताकते हुए
सारे संसार के आर-पार?

या फिर
इतिहास की ढलान पर
फिसल-फिसल
चढ़ते हुए बार-बार
ढोते हुए
सकल भुवन भार?
देखा है तुमने
उसको कभी?

देखा है तुमने
उसको कभी
सुबह-सुबह पीते हुए अन्धकार?