धनवान भतेरे दुनियाँ म्हं / दयाचंद मायना
धनवान भतेरे दुनियाँ म्हं, कोई दानी ना रहा
लाखा के म्हं चोट करणियां, छानी ना रहा...टेक
मनै सुणा सै हरिचन्द नै, राज दे दिया दान म्हं
तीन वचन तन, मन, धन, सिरताज दे दिया दान म्हं
सांस-सारंगी, मन का बाजा, साज दे दिया दान म्हं
घणे दिनां की बात नहीं, जणूं आज दे दिया दान म्हं
मरघट पै कर मांगणियां, वो इंसानी ना रहा...
दूजा भगत मोरध्वज प्यारा, जो पैदा हुआ द्वापर म्हं
कृष्ण, अर्जुन, यमराज आ उतरे थे दानी के घर म्हं
वो राजा राणी हद करगे, एक आरा उठा लिया था कर म्हं
बज्जर कैसी छाती करकै, टेक दिया सुत के सिर म्हं
बेटे का बलिदान देणिया, वो कुर्बानी ना रहा...
मैंबर और पंचायत चौधरी, सरपंच गाम के बण बैठे
बेईमाने का दर्ब लूटकै, महल बावड़ी चण बैठे
सीधे हरफ भूलगे पढ़णा, उल्टे अक्षण गिण बैठे
मेल-जोल और प्रेम ना रहा, फूट बीमारी जण बैठे
चाणक्य सा प्रधान, इसा ज्ञानी ना रहा...
‘दयाचन्द’ इस भूमंडल पै, प्रचार करण आए थे
मुगलों के गुलाम क्षत्रीय, पोपां नै करवाए थे
लंदन आले गौरां नै, यहाँ लोग बाणिया ल्याए थे
भारत के गद्दारां नै खुद जाकै चीन चढ़ाए थे
बेईमाने म्हं पाछै, हिन्दुस्तानी ना रहा...