धरया सिर पाप घड़ा, क्यूं तळै खड़ा / दयाचंद मायना
धरया सिर पाप घड़ा, क्यूं तळै खड़ा, ईब नहीं बसावै पार
या गाड्डी टूट लई मेरे यार
जत का जूआ ज्योत टूटगे, सत की सिळम रही कोन्या
ल्याज, शर्म का डिग्या लाळवा, नाके नाड़ सही कोन्या
ऊतपणा मैं फिरै ऊंटड़ा, डामांडोल ढही कोन्या
लग्या आरा मैं, घुण सारा मैं, आमण पूठी बेकार
या गाड्ड़ी टूट लई मेरे यार
बल्ली, बर्री सारी खुलगी, आकै पड़ी धरण के मां
पाप बोझ का डिग्या पाटड़ा, कोन्या रहा परण के मां
मूंग मोतिया सिर मैं लाग्या, आगी जान मरण के मां
रंग बिगड़ा, सब ढंग बिगड़ा, सट सिर मैं सेहरा मार
या गाड़ी टूट लई मेरे यार
गाड्डी के दो पहिए घिसगे, भार सहण की फड़ टूटी
धुरा पाप का कती पाट्ग्या, ज्यूं मोती की लड़ टूटी
ठटठा मैं गई टूट ठिकाणी, के ळे कै सी धड़ टूटी
ठीक नहीं, सही लीख नहीं, चलै बारा पत्थर बाहर
या गाड्डी टूट लई मेरे यार
पुन की पाती नै जर खाग्या, रही करम की कील नहीं
सब गाड्डी का ईधन होग्या, इब फूकण की ढील नहीं
कह ‘दयाचंद’ गडवाले की, लागै राम अपील नहीं
जाणा हो, दुख ठाणा हो, होले पैदल असवार
या गाड्डी टूट लई मेरे यार