धुर तै धोखा करते आए / दयाचंद मायना
धुर तै धोखा करते आए, आज के नई रीत हो सै
गरज-गरज के प्यारे बहना, लोग किसके मीत हो सै
द्रोपदी जुए के मैं हारी, युधिष्ठिर पासे डारै था हे
शादी करके पार्वती ने भोळा भी दुदकारै था हे
सत की सीता घर तै ताह दी रामचंद्र हद तारै था हे
हरिश्चंद्र भी डाण बता के मदनावत ने मारै था हे
ब्याही का भी तरस करै ना इनकै के प्रीत हो सै
अंगूठी देकै शकुंतला ने दुष्यंत बख्त पै नाट गया हे
पवन कुमार भी अंजना गैल्या के करणी कर घाट गया हे
नळ राजा भी दमयंती की बण मैं साड़ी काट गया हे
ईसी-ईसी बातां नैं सुणके मेरा मन मरदां तै पाट गया हे
ये वक्त पड़े पै आंख बदलज्या इनकी खोटी नीत हो सै
रूपाणी भी जोधानाथ नै बण के बीच खंदाई थी हे
बण मैं धक्के खा कै मरगी मुड़कै घर ना आई थी हे
चाप सिंह ने सोमवती पतिव्रता जार बताई थी हे
मदन सेन नै भी सूती दई काट नागदे बाई थी हे
बीर बिचारी कुछ ना बोलै कोए पीटले भीत हो सै
कद लग खोट गिणुं मरदां का बीर बिचारी साफ सै हे
बीर भतेरी दयावान नर करते डोलें पाप सै हे
चोरी, ठगी, बेईमानी की मरदां कै छाप सै हे
बीर मर्द के झगड़े ऊपर गुरु मुंशी की छाप सै हे
ये ऊपरा तळी के भजन और गाणे, ‘दयाचंद’ के गीत हो सै