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धूप का आसेब चेहरे से हटाना चाहिए / सिया सचदेव

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धूप का आसेब चेहरे से हटाना चाहिए
अब्रपारों का खुनक़ इक शामियाना चाहिए

अपना ग़म दुनिया की नज़रों से छुपाना चाहिए
चोट जब दिल पर लगे तो मुस्कुराना चाहिए

हाँ मेरे दिल की उमंगें हो रही हैं फिर जवाँ
पाँव की पाज़ेब को भी गुनगुनाना चाहिए

ज़हरे-ख़ामोशी से है माहौल में तेज़ाबियत
अब कोई तूफ़ान फिर सर पर उठाना चाहिए

ज़हन की तख़ईल को काग़ज़ पे लाने के लिए
ख़ुशनुमा अल्फ़ाज़ का मुझको खज़ाना चाहिए

एक लम्हा है बहुत दिल से निकलने के लिए
दिल में घर करने के ख़ातिर इक ज़माना चाहिए

फिर ख़ुशी की राह भी हमवार कर देते हैं ग़म
दर्द की बारिश में जी भर के नहाना चाहिए