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नई चाल के मौसम में / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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कल बेटे ने कहा
कि पापा
सपनों का युग बीत चुका है
 
हाँ, गुलाब की कलमें
जो रोपीं थीं हमने
मरीं रात में
लोगों को गुस्सा आता
अब जल्दी-जल्दी
बात-बात में
 
विश्वहाट की
महिमा देखें
माथा सबका वहीँ झुका है
 
नई चाल के मौसम में
सब कुछ पाने की
होड़ लगी है
मीठी रितु की खबर छपी है
अख़बारों में
यही ठगी है
 
एड़ लगाकर
दौड़ रहे सब
घोडा सबका वहीँ रुका है
 
पुरखों ने जोड़ा था रिश्ता
आँगन से
वे नहीं रहे अब
'सिलीकान' घाटी में जाकर
बसने की बातें
करते सब
 
कौन नदी को
पूजेगा अब
रात पुराना घाट फुँका है